Considerations To Know About अम्बे आरती

प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव...॥

नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव...॥

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 “यमराज, कुबेर जी आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पंडित या कोई भी आपके सुयश का पूर्णतः भली भांति वर्णन नहीं कर सकते हैं।”

भावार्थ– आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को जिलाया। इस कार्य से प्रसन्न होकर भगवान् श्री राम ने आपको हृदय से लगा लिया।

आपके तीनों रूप अति सुंदर हैं और तीनों लोकों में मन मोह लेते हैं।।

भावार्थ – हे अतुलित बल के भण्डार घर रामदूत हनुमान जी! आप लोक में अंजनी पुत्र और पवनसुत के नाम से विख्यात हैं।

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ब्रह्मा के अनुयायी ब्रह्मादिक ऋषि, विष्णु के अनुयायी सनक आदि ऋषि तथा शिवजी के अनुयायी भूत, प्रेत इत्यादि संग हैं।।

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन-कुमार।

व्याख्या – मैं अपने को देही न मानकर देह मान बैठा हूँ, इस कारण बुद्धिहीन हूँ और पाँचों प्रकार के क्लेश (अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष एवं अभिनिवेश) तथा षड्विकारों (काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर) से संतप्त हूँ; अतः आप जैसे सामर्थ्यवान् ‘अतुलितबलधामम्‘ ‘ज्ञानिनामग्रगण्यम्‘ से बल, बुद्धि एवं विद्या की याचना करता हूँ तथा समस्त क्लेशों एवं विकारों से मुक्ति पाना चाहता हूँ।

आपकी जय हो! तीनों लोकों, स्वर्ग लोक, भूलोक और पाताल लोक में आपकी कीर्ति है।

त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥

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